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Sunday, January 28, 2024

मुनव्वर राना की याद में लखनऊ के युवाओं ने संगोष्ठी सह श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया

 लखनऊ : राजधानी में 25 जनवरी को मशहूर शायर मुनव्वर राना की याद में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया । जिसमें मुनव्वर राना साहब को श्रद्धांजलि दी गई । शहर के आई टी चौराहे के करीब जनचेतना स्थित जैकोबें क्लब कैफ़े में इस सभा का आयोजन हरिभान यादव और अरग़वान रब्बही के द्वारा किया गया ।

 कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए अरग़वान रब्बही ने मुनव्वर राना को याद करते हुए उनकी लिखीं दो पंक्तियाँ पढ़ीं-

"सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर

मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते"

 हिन्दी साहित्य के शिक्षक दुर्गेश कुमार चौधरी ने कहा कि मुनव्वर राना साहब की शायरी उर्दू ही नहीं हिंदी भाषा से जुड़े लोगों को भी पढ़ना चाहिए । मुनव्वर राना की बात करते हुए हरिभान यादव ने बताया कि माँ से जुड़े जज़्बात पर उन्होंने जो शायरी की है, वो उनके दिल के बहुत क़रीब है और ये शेर पढ़ा-

"किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई

मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई"

अधिवक्ता ज्योति राय ने कहा कि मुनव्वर साहब ने अलग-अलग विषयों पर शायरी की है । वकालत की पढ़ाई कर रहे अहमद रज़ा ने बताया कि किस तरह ज़िन्दगी के अलग अलग मौक़ों पर राना साहब की शायरी ने उनका साथ दिया । अपनी यादगार से ये शेर अहमद रज़ा ने पढ़ा-

"कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे

कुछ उस ने भी बालों को खुला छोड़ दिया था"

पत्रकार रामधारी यादव ने बताया कि मुनव्वर राना बहुत संजीदा व्यक्ति थे उन्होंने दो बार मुनव्वर राना का इंटरव्यू लिया था । इस प्रकार कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों ने अपने विचार रखे और मुनव्वर राना को श्रद्धांजलि अर्पित की ।


  कार्यक्रम में हिंदी साहित्य के शिक्षक दुर्गेश कुमार चौधरी, अधिवक्ता प्रवीण पाण्डेय, अधिवक्ता ज्योति राय, अधिवक्ता मुहम्मद अनस, छात्र कांग्रेस के नेता अहमद रज़ा, समाजवादी पार्टी के समर्थक व मुनव्वर राना के पड़ोसी साद हफ़ीज़, परमार्थ टाइम्स पत्रिका के संपादक रामधारी यादव, प्राइम टीवी के मुहम्मद फ़ाज़िल, संवाददाता मोहम्मद नज़र, लखनऊ विश्विद्यालय के पीएचडी छात्र प्रशांत मिश्रा, मोहम्मद फ़ज़ल आदि शामिल हुए ।


  जनवरी की 14 तारीख़ को मशहूर शायर मुनव्वर राना का लखनऊ में निधन हो गया । उनका जन्म 26 नवंबर 1952 को रायबरेली जिले में हुआ था । उनकी परवरिश कोलकाता में हुई और लखनऊ में उन्होंने अपना घर बनाया । साल 2014 में उन्हें उनकी नज़्म शाहदाबा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ागया था ।