मूर्ति की ऊंचाई 23 इंच और चौड़ाई 11 इंच बताई जा रही है, जबकि इसका वजन लगभग 14 किलोग्राम है। यह अष्टधातु से बनी प्रतीत होती है, हालांकि इसकी पुष्टि पुरातत्व विभाग की जांच के बाद ही हो सकेगी। ग्राम प्रधान राजेश कुमार के अनुसार, मछुआरे राजकिशोर को जाल में कुछ असामान्य भारीपन महसूस हुआ था। जब जाल को बाहर निकाला गया, तो उसमें भगवान शिव की मूर्ति मिली। इसकी सूचना तुरंत स्थानीय लोगों और पुलिस को दी गई।
गोसाईगंज थाना पुलिस मौके पर पहुंची और मूर्ति को अपने कब्जे में ले लिया। थाना अध्यक्ष विजयंत मिश्रा ने बताया कि इसे सुरक्षित रखा गया है और प्रारंभिक जांच शुरू कर दी गई है। पुलिस ने मूर्ति को पुरातत्व विभाग को सौंपने का निर्णय लिया है, जिससे इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता का विश्लेषण किया जा सके। विशेषज्ञ मूर्ति की उम्र, निर्माण शैली और धातु की संरचना का अध्ययन करेंगे। साथ ही यह भी जांच की जाएगी कि यह मूर्ति नदी में कैसे पहुंची—क्या यह प्राचीन काल से जल में थी या हाल ही में किसी कारण से वहां पहुंची।
इस खोज को लेकर पौसरा गांव और आसपास के क्षेत्रों में श्रद्धा और कौतूहल का माहौल है। सरयू नदी को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है और अयोध्या के संदर्भ में इसका विशेष महत्व है। कई स्थानीय लोग इसे प्राचीन धार्मिक इतिहास से जोड़ रहे हैं। कुछ इसे भगवान शिव का आशीर्वाद मान रहे हैं, तो कुछ इसे अयोध्या की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा बता रहे हैं।
अयोध्या प्राचीन काल से ही धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र रहा है, और सरयू नदी के तट पर स्थित इस नगर का उल्लेख रामायण समेत अन्य ग्रंथों में मिलता है। नदी में पहले भी समय-समय पर प्राचीन वस्तुएं और अवशेष मिलते रहे हैं, जो इस क्षेत्र की समृद्ध पुरातात्विक विरासत की ओर इशारा करते हैं। यदि यह मूर्ति प्राचीन सिद्ध होती है, तो यह अयोध्या के इतिहास को और गहराई से समझने में सहायक हो सकती है।
फिलहाल, मूर्ति पुलिस की निगरानी में है और पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है। इस बीच, प्रशासन ने लोगों से अफवाहों से बचने और शांति बनाए रखने की अपील की है। यह घटना अयोध्या के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व को एक बार फिर उजागर करती है।
Edited by Hari Bhan Yadav