पढ़िए डॉ० कलीम कैसर बलरामपुरी की ग़ज़ल .......
मिट्टी
ज़िन्दगानी का फ़लसफ़ा मिट्टी
आग ,पानी, है और हवा, मिट्टी ।
तेरे दुख का इलाज है सोना
मेरे हर दर्द की दवा मिट्टी ।
एक नन्हे से बीज को इक दिन
कर ही देती है क्या ? से क्या ? मिट्टी ।
आसमां सर पे रखने वाले देख
पाओं नीचे तेरे है क्या ? मिट्टी ।
जिसको ग़म था मिरे न होने का
सब से पहले वो दे गया मिट्टी ।
दिल से जो मानिए तो सब कुछ है
वरना सब देवी, देवता मिट्टी ।
ज़िन्दगी तब समझ मे आ जाती
जब तू दर दर की फांकता मिट्टी ।
तू भी रोता है मैं भी रोता हूँ
भाई ,क्यों छोड़ कर गया मिट्टी।
इक ग़ज़ल ज़िन्दगी भी है क़ैसर"
जिसका अन्तिम है क़ाफ़िया मिट्टी ।
- कलीम क़ैसर