बीजू पटनायक भारत के एकमात्र ऐसे व्यक्ति है जिनके निधन पर उनके पार्थिव शरीर को 3 देशों के राष्ट्रीय ध्वज में लपेटा गया था भारत, रूस और इंडोनेशिया ।
बीजू पटनायक पायलट थे और जब द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोवियत संघ संकट में घिर गया था तब उन्होंने लड़ाकू विमान डकोटा उड़ा कर हिटलर की सेनाओं पर काफी बमबारी की थी जिससे हिटलर पीछे हटने को मजबूर हो गया था । उनकी इस बहादुरी पर उन्हें सोवियत संघ का सर्वोच्च पुरस्कार भी दिया गया था और उन्हें सोवियत संघ ने अपनी नागरिकता प्रदान की थी ।
बीजू पटनायक और उनकी पत्नी ज्ञानवती ने जर्काता के पास आनन-फानन विमान उतारा । वहां से वह इंडोनेशिया के प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुल्तान शहरयार और डॉ० सुकर्णो को लेकर दिल्ली आ गए । इसके बाद पीएम नेहरू के साथ उनकी गोपनीय बैठक कराई । इसके बाद डॉ० सुकर्णो आजाद इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति बने । इस बहादुरी के लिए पटनायक को मानद रूप से इंडोनेशिया की नागरिकता दी गई । उन्हें इंडोनेशिया के सर्वोच्च सम्मान भूमि पुत्र से नवाजा गया । इसके बाद 1996 में इंडोनेशिया की आजादी की 50वीं वर्षगांठ के मौके पर उन्हें सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार 'बिनतांग जासू उतमा' से सम्मानित किया गया ।
वायुसेना की नौकरी के बाद बीजू पटनायक ने भारत की सबसे पहली एयरलाइन कंपनियों में एक कलिंगा एयरलाइंस शुरू की । कलिंगा एयरलाइंस मुनाफे ने साथ चल रही थी । इसी बीच, 1953 में भारत सरकार ने बीजू पटनायक से कलिंगा एयरलाइंस खरीदकर उसे इंडियन एयरलाइंस बना दिया । बीजू पटनायक ने अपनी मौत को लेकर एक बार कहा था, 'किसी लंबी बीमारी के बजाय मैं विमान दुर्घटना में मरना चाहूंगा । नहीं तो फिर ऐसा हो कि मैं तुरंत ही मर जाऊं ,मैं गिरूं और मर जाऊं ।' हालांकि, ऐसा हो नहीं पाया । उनका हार्ट और सांस से जुड़ी बीमारी के चलते 17 अप्रैल 1997 को निधन हुआ ।